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सोमवार, अगस्त 18, 2025

आर्तिहर स्तोत्रम्

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आर्तिहर स्तोत्रम् Artihara Stotram

श्री शंभो मयि करुणाशिशिरां दृष्टिं दिशन् सुधावृष्टिम्।
सन्तापमपाकुरुमे मन्तापरमेश तव दयायाः स्याम् ॥१॥

अवसीदामि यदार्तिभिरनुगुणमिदमोकसोंहसां खलु मे।
तव सन्नवसीदामि यदन्तकशासन नतत्तवानुगुणम् ॥२॥

देव स्मरंति तव येतेषां स्मरतोऽपि नार्तिरितिकीर्तिम्।
कलयसि शिव पाहीतिक्रन्दन् सीदाम्यहं किमुचितमिदम् ॥३॥

आदिश्याघकृतौ मामन्तर्यामिन्नसावघात्मेति।
आर्तिषुमज्जयसे मां किंब्रूयां तवकृपैकपात्रमहम् ॥४॥

मन्दाग्र्णीरहं तव मयि करुणां घटयितुं विबोनालम्।
आकृष्टुं तान्तु बलादलमिह मद्दैन्यमिति समाश्वसिति ॥५॥

त्वं सर्वज्ञोऽहं पुनरज्ञोऽनीशोहमीश्वरत्वमसि।
त्वं मयि दोषान् गणयसि किं कथये तुदति किं दया नत्वाम् ॥६॥

आश्रितमार्ततरं मामुपेक्षसे किमिति शिव न किं दयसे।
श्रितगोप्ता दीनार्तिहृदिति खलु शंसंति जगति सन्तस्त्वाम् ॥७॥

प्रहराहरेतिवादी फणितमदाख्य इति पालितो भवता।
शिव पाहीति वदोऽहं शृतो न किं क्वां कथं न पाल्यस्ते ॥८॥

शरणं व्रज शिवमार्तीस्सतव हरेदिति सतां गिराऽहम् त्वाम्।
शरणं गतोऽस्मि पालय खलमपि तेष्वीश पक्षपातान्माम् ॥९॥

इति श्री श्रीधरवेंकटेशार्यकृतिषु आर्तिहरस्तोत्रं संपूर्णम् ॥

श्रीकण्ठमिव भास्वन्तं शिवनामपरायणम्। श्रीधरं वेङ्कटेशार्यं श्रेयसे गुरुमाश्रये ॥

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