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बुधवार, अक्टूबर 16, 2024

दशावतारस्तोत्रम् Pralaya Payodhi Jale

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दशावतारस्तोत्रम् एक प्रसिद्ध संस्कृत स्तोत्र है, जिसमें भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र को आदिगुरु श्रीमद्वेन्द्राचार्य द्वारा रचित माना जाता है। भगवान विष्णु, जिन्हें सृष्टि के पालनहार और संसार की रक्षा करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है, समय-समय पर संसार में अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए अवतार धारण करते हैं। दशावतार का उल्लेख विष्णु पुराण, भगवद पुराण, और अन्य धर्मग्रंथों में किया गया है।

दशावतार निम्नलिखित हैं:

  1. मत्स्य अवतार: भगवान विष्णु ने मत्स्य (मछली) का रूप धारण किया और मनु को प्रलय से बचाया। इस अवतार में भगवान ने वेदों की रक्षा की।
  2. कूर्म अवतार: समुद्र मंथन के समय भगवान विष्णु ने कच्छप (कछुए) का अवतार लिया और मंदराचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण कर मंथन को सफल बनाया।
  3. वराह अवतार: इस अवतार में भगवान ने एक वराह (सूअर) का रूप धारण कर पृथ्वी को हिरण्याक्ष दैत्य के चंगुल से मुक्त किया।
  4. नृसिंह अवतार: भगवान विष्णु ने आधे मानव और आधे सिंह के रूप में अवतार लिया और भक्त प्रह्लाद की रक्षा करते हुए हिरण्यकशिपु का वध किया।
  5. वामन अवतार: एक बौने ब्राह्मण के रूप में भगवान ने दानवीर राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी और अपने विराट रूप में तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया।
  6. परशुराम अवतार: भगवान विष्णु ने इस अवतार में एक ब्राह्मण योद्धा परशुराम का रूप धारण किया और पृथ्वी को क्षत्रियों के अत्याचार से मुक्त किया।
  7. राम अवतार: भगवान विष्णु ने राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम के रूप में अवतार लिया और रावण का वध कर धर्म की स्थापना की।
  8. कृष्ण अवतार: भगवान विष्णु ने द्वापर युग में कृष्ण के रूप में अवतार लिया। उन्होंने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और कंस, शिशुपाल आदि दुष्टों का नाश किया।
  9. बुद्ध अवतार: भगवान विष्णु ने गौतम बुद्ध के रूप में अवतार लेकर लोगों को अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाया।
  10. कल्कि अवतार: यह भगवान विष्णु का भविष्य में होने वाला अवतार है। माना जाता है कि कल्कि अवतार कलियुग के अंत में होगा, जब भगवान कल्कि अधर्म का नाश करेंगे और धर्म की पुनर्स्थापना करेंगे।

दशावतारस्तोत्रम् में इन दस अवतारों की महिमा का गान किया गया है, जो भक्तों को भगवान विष्णु की लीला और उनके महान कार्यों की याद दिलाता है। यह स्तोत्र विशेष रूप से उन लोगों द्वारा पढ़ा जाता है जो भगवान विष्णु के प्रति अपनी श्रद्धा और भक्ति प्रकट करना चाहते हैं।

दशावतारस्तोत्रम् Dasavatara Stotra with lyrics – Pralaya Payodhi Jale

प्रलयपयोधिजलेधृतवानसि वेदम् विहितवहित्रचरित्रमखेदम् ।
केशव धृतमीनशरीर जय जगदीश हरे ॥१॥
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे धरणिधरणकिणचक्रगरिष्ठे ।
केशव धृतकच्छपरूप जय जगदीश हरे ॥२॥
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना शशिनि कलङ्ककलेव निमग्ना ।
केशव धृतसूकररूप जय जगदीश हरे ॥३॥
तव करकमलवरे नखमद्भुतशृङ्गम् दलितहिरण्यकशिपुतनुभृङ्गम् ।
केशव धृतनरहरिरूप जय जगदीश हरे ॥४॥

छलयसि विक्रमणे बलिमद्भुतवामन पदनखनीरजनित जनपावन ।
केशव धृतवामनरूप जय जगदीश हरे ॥५॥
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम् स्नपयसिपयसि शमितभवतापम् ।
केशव धृतभृगुपतिरूप जय जगदीश हरे ॥६॥

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पतिकमनीयम् दशमुखमौलिबलिं रमणीयम् ।
केशव धृतरघुपतिवेष जय जगदीश हरे ॥७॥
वहसि वपुषि विशदे वसनं जलदाभम् हलहतिभीतिमिलितयमुनाभम् ।
केशव धृतहलधररूप जय जगदीश हरे ॥८॥

निन्दसि यज्ञविधेरहह श्रुतिजातम् सदयहृदय दर्शितपशुघातम् ।
केशव धृतबुद्धशरीर जय जगदीश हरे ॥९॥
म्लेच्छनिवहनिधने कलयसि करवालम् धूमकेतुमिव किमपि करालम् ।
केशव धृतकल्किशरीर जय जगदीश हरे ॥१०॥

श्रीजयदेवकवेरिदमुदितमुदारम् शृणु सुखदं शुभदं भवसारम् ।
केशव धृतदशविधरूप जय जगदीश हरे ॥११॥
वेदानुद्धरते जगन्निवहते भूगोलमुद्बिभ्रते
दैत्यं दारयते बलिं छलयते क्षत्रक्षयं कुर्वते ।
पौलस्त्यं जयते हलं कुलयते कारुण्यमातन्वते
म्लेच्छान् मूर्च्छयते दशाकृतिकृते कृष्णाय तुभ्यं नमः ॥१२॥

श्री दशावतार स्तोत्र श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दशावतारस्तोत्रं

चलल्लोलकल्लोलकल्लोलिनीशस्फुरन्नक्रचक्रातिवक्त्राम्बुलिनः ।
हतो येन मीनावतारेण शङ्खः स पायादपायाज्जगद्वासुदेवः ॥ १॥

धरानिर्जरारातिभारादपारादकूपारनीरातुराधः पतन्ती ।
धृता कूर्मरूपेण पृष्ठोपरिष्टे सदेवो मुदे वोस्तु शेषाङ्गशायी ॥ २॥

उद्रग्रे रदाग्रे सगोत्रापि गोत्रा स्थिता तस्थुषः केतकाग्रे षडङ्घ्रेः ।
तनोति श्रियं सश्रियं नस्तनोतु प्रभुः श्रीवराहावतारो मुरारिः ॥ ३॥

उरोदार आरम्भसंरम्भिणोसौ रमासम्भ्रमाभङ्गुराग्रैर्नखाग्रैः ।
स्वभक्तातिभक्त्याभिव्यक्तेन दारुण्यघौघं सदा वः स हिंस्यान्नृसिंहः ॥ ४॥

छलादाकलय्य त्रिलोकीं बलीयान् बलिं सम्बवन्ध त्रिलोकीबलीयः ।
तनुत्वं दधानां तनुं सन्दधानो विमोहं मनो वामनो वः स कुर्यात् ॥ ५॥

हतक्षत्रियासृक्प्रपानप्रनृत्तममृत्यत्पिशाचप्रगीतप्रतापः ।
धराकारि येनाग्रजन्माग्रहारं विहारं क्रियान्मानसे वः स रामः ॥ ६॥

नतग्रीवसुग्रीव-साम्राज्यहेतुर्दशग्रीव-सन्तान-संहारकेतुः ।
धनुर्येन भग्नं महत्कामहन्तुः स मे जानकीजानिरेनांसि हन्तु ॥ ७॥

घनाद्गोधनं येन गोवर्धनेन व्यरक्षि प्रतापेन गोवर्धनेन ।
हतारातिचक्री रणध्वस्तचक्री पदध्वस्तचक्री स नः पातु चक्री ॥ ८॥

धराबद्धपद्मासनस्थाङ्घ्रियष्टिर्नियम्यानिलं न्यस्तनासाग्रदृष्टिः ।
य आस्ते कलौ योगिनां चक्रवर्ती स बुद्धः प्रबुद्धोऽस्तु निश्चिन्तवर्ती ॥ ९॥

दुरापारसंसारसंहारकारी भवत्यश्ववारः कृपाणप्रहारी
मुरारिर्दशाकारधारीह कल्की करोतु द्विषां ध्वंसनं वः स कल्की ॥ १०॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं दशावतारस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

 

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