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रविवार, दिसम्बर 22, 2024

श्री वैष्णो देवी चालीसा

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श्री वैष्णो देवी चालीसा Maa Vaishno Chalisa

श्री वैष्णो देवी चालीसा एक पवित्र स्तुति है जो देवी वैष्णो माता की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करती है। यह चालीसा वैष्णो देवी के भक्तों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है और इसे देवी के प्रति श्रद्धा और भक्ति के साथ पाठ किया जाता है। चालीसा 40 पंक्तियों (चौपाइयों) से बनी होती है, जिसमें देवी की स्तुति और उनके गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

श्री वैष्णो देवी चालीसा का महत्व: Importance of Shri Vaishno Devi Chalisa

  1. आध्यात्मिक शांति: श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से मानसिक शांति और आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है। यह चालीसा व्यक्ति के जीवन में शांति और स्थिरता लाने में मदद करती है।
  2. कठिनाइयों का निवारण: कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति कठिनाइयों में हो, यदि वह श्रद्धापूर्वक श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करता है, तो उसकी समस्याओं का निवारण होता है। देवी उसकी रक्षा करती हैं और उसे दुखों से मुक्ति प्रदान करती हैं।
  3. भक्ति का माध्यम: यह चालीसा भक्त और देवी वैष्णो माता के बीच एक मजबूत भक्ति संबंध स्थापित करती है। नियमित पाठ से देवी की कृपा प्राप्त होती है और भक्त को उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।
  4. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: यह माना जाता है कि श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। देवी की कृपा से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और संतुलन आता है।

श्री वैष्णो देवी चालीसा के लाभ: Benefits of Shri Vaishno Devi Chalisa:

  • विघ्नों से मुक्ति: भक्तों का विश्वास है कि श्री वैष्णो देवी की चालीसा का नियमित पाठ जीवन में आने वाली सभी बाधाओं और विघ्नों को दूर करता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: यह पाठ व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है, जिससे उसके जीवन में खुशहाली और समृद्धि आती है।
  • संकट से रक्षा: चालीसा का पाठ करने से देवी वैष्णो माता अपने भक्तों की सभी प्रकार के संकटों से रक्षा करती हैं और उन्हें सफलता की ओर अग्रसर करती हैं।

श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ विधि: Recitation method of Shri Vaishno Devi Chalisa:

  1. प्रातः काल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजा स्थान पर देवी वैष्णो माता की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और धूप जलाएं।
  3. देवी को लाल फूल, नारियल, चुनरी, और फल चढ़ाएं।
  4. श्रद्धा और भक्ति के साथ श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करें।

श्री वैष्णो देवी यात्रा का महत्त्व: Importance of Shri Vaishno Devi Yatra:

वैष्णो देवी मंदिर जम्मू-कश्मीर के त्रिकुटा पर्वत पर स्थित है, जो भारत के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यहां की यात्रा को अत्यधिक कठिन माना जाता है, लेकिन भक्त इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ पूरा करते हैं। इस यात्रा को करने के दौरान श्री वैष्णो देवी चालीसा का पाठ करना अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है। भक्त विश्वास करते हैं कि माता वैष्णो देवी उनके सभी संकटों का निवारण करती हैं और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।

श्री वैष्णो देवी चालीसा Maa Vaishno Chalisa

॥ दोहा ॥

गरुड़ वाहिनी वैष्णवी त्रिकूटा पर्वत धाम।
काली, लक्ष्मी, सरस्वती शक्ति तुम्हें प्रणाम ॥

॥ चौपाई ॥

नमोः नमोः वैष्णो वरदानी, कलि काल में शुभ कल्याणी।
मणि पर्वत पर ज्योति तुम्हारी, पिंडी रूप में हो अवतारी ।

देवी देवता अंश दियो है, रत्नाकर घर जन्म लियो है।
करी तपस्या राम को पाऊँ, त्रेता की शक्ति कहलाऊँ।

कहा राम मणि पर्वत जाओ, कलियुग की देवी कहलाओ।
विष्णु रूप से कल्की बनकर, लूंगा शक्ति रूप बदलकर ।

तब तक त्रिकुटा घाटी जाओ, गुफा अंधेरी जाकर पाओ ।
काली-लक्ष्मी-सरस्वती माँ, करेंगी शोषण-पार्वती माँ।

ब्रह्मा, विष्णु, शंकर द्वारे, हनुमत, भैरों प्रहरी प्यारे ।
रिद्धि, सिद्धि चंवर डुलावें, कलियुग-वासी पूजन आवें।

पान सुपारी ध्वजा नारियल, चरणामृत चरणों का निर्मल।
दिया फलित वर माँ मुस्काई, करन तपस्या पर्वत आई।

कलि कालकी भड़की ज्वाला, इक दिन अपना रूप निकाला।
कन्या बन नगरोटा आई, योगी भैरों दिया दिखाई।

रूप देख सुन्दर ललचाया, पीछे-पीछे भागा आया।
कन्याओं के साथ मिली माँ, कौल-कंदौली तभी चली माँ।

देवा माई दर्शन दीना, पवन रूप हो गई नवरात्रों में लीला रचाई,
भक्त श्रीधर के घर योगिन को भण्डारा दीना, सबने रुचिकर भोजन प्रवीणा ।

आई, कीना, मांस, मदिरा भैरों मांगी, रूप पवन कर इच्छा त्यागी।
बाण मारकर गंगा निकाली, पर्वत भागी हो मतवाली।

चरण रखे आ एक शिला जब, चरण पादुका नाम पड़ा तब।
पीछे भैरों था बलकारी, छोटी गुफा में जाय पधारी।

नौ माह तक किया निवासा, चली फोड़कर किया प्रकाशा।
आद्या शक्ति-ब्रह्म कुमारी, कहलाई माँ आद कुंवारी।

गुफा द्वार पहुंची मुस्काई, लांगुर वीर ने आज्ञा पाई।
भागा-भागा भैरों आया, रक्षा हित निज शस्त्र चलाया।

पड़ा शीश जा पर्वत ऊपर, किया क्षमा जा दिया उसे वर।
अपने संग में पुजवाऊंगी, भैरों घाटी बनवाऊंगी।

पहले मेरा दर्शन होगा, पीछे तेरा सुमरन होगा।
बैठ गई माँ पिण्डी होकर, चरणों में बहता जल झर-झर।

चौंसठ योगिनी-भैरों बरवन, सप्तऋषि आ करते सुमरन ।
घंटा ध्वनि पर्वत पर बाजे, गुफा निराली सुन्दर लागे।

भक्त श्रीधर पूजन कीना, भक्ति सेवा का वर लीना।
सेवक ध्यानूं तुमको ध्याया, ध्वजा व चोला आन चढ़ाया।

सिंह सदा दर पहरा देता, पंजा शेर का दुःख हर लेता।
जम्बू द्वीप महाराज मनाया, सर सोने का छत्र चढ़ाया।

हीरे की मूरत संग प्यारी, जगे अखंड इक जोत तुम्हारी।
आश्विन चैत्र नवराते आऊँ, पिण्डी रानी दर्शन पाऊँ।

सेवक ‘शर्मा’ शरण तिहारी, हरो वैष्णो विपत हमारी।

॥ दोहा ॥

कलियुग में महिमा तेरी, है माँ अपरम्पार ।
धर्म की हानि हो रही, प्रगट हो अवतार।

 



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