आज बिरज में होरी रे रसिया
“आज बिरज में होरी रे रसिया” एक प्रसिद्ध होली भजन है, जो बृज क्षेत्र की होली की मस्ती और भक्ति को जीवंत रूप में प्रस्तुत करता है। यह भजन भगवान श्रीकृष्ण और राधा के प्रेममय रास को चित्रित करता है, जो होली के त्योहार के दौरान बृज की गलियों में रंग, गुलाल और प्रेम के साथ खेलते हैं। बृज, जो मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, और बरसाना जैसे स्थानों को समेटे हुए है, श्रीकृष्ण की लीलाओं का केंद्र रहा है। यह भजन न केवल होली के उत्साह को दर्शाता है, बल्कि राधा-कृष्ण के बीच के आध्यात्मिक और प्रेममय संबंध को भी उजागर करता है।
Aaj Biraj Mein Hori Re Rasiya
आज बिरज में होरी रे रसिया आज बिरज में होरी रे रसिया ।
होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥
अपने अपने घर से निकसी, कोई श्यामल कोई गोरी रे रसिया ।
कौन गावं के कुंवर कन्हिया, कौन गावं राधा गोरी रे रसिया ।
नन्द गावं के कुंवर कन्हिया, बरसाने की राधा गोरी रे रसिया ।
कौन वरण के कुंवर कन्हिया, कौन वरण राधा गोरी रे रसिया ।
श्याम वरण के कुंवर कन्हिया प्यारे, गौर वरण राधा गोरी रे रसिया ।
इत ते आए कुंवर कन्हिया, उत ते राधा गोरी रे रसिया ।
कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया ।
कृष्ण के हाथ कनक पिचकारी, राधा के हाथ कमोरी रे रसिया ।
उडत गुलाल लाल भए बादल, मारत भर भर झोरी रे रसिया ।
अबीर गुलाल के बादल छाए, धूम मचाई रे सब मिल सखिया ।
चन्द्र सखी भज बाल कृष्ण छवि, चिर जीवो यह जोड़ी रे रसिया ।
आज बिरज में होरी रे रसिया । होरी रे होरी रे बरजोरी रे रसिया ॥
भजन का महत्व
होली का त्योहार भारत में रंगों, उमंग, और भक्ति का पर्याय है। “आज बिरज में होरी रे रसिया” भजन इस त्योहार की आत्मा को समेटे हुए है। यह भजन ब्रज की होली को विशेष बनाता है, जहां श्रीकृष्ण और राधा के साथ गोपियों का रंगबिरंगा उत्सव चित्रित होता है। यह भजन भक्ति और उत्साह का मिश्रण है, जो श्रोताओं के मन में आनंद और भक्ति का संचार करता है