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रविवार, अगस्त 10, 2025

विश्व वाटिका की प्रति क्यारी में

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विश्व वाटिका की प्रति क्यारी में – Vishv Vaatika ki Prati Kyaremen

किसके लिये सुमन चुन-चुनकर सजा रहा सुन्दर डाली ।।

क्या तू नहीं देखता इन सुमनोंमें उसका प्यारा रूप ।

जिसके लिये विविध विधिसे है हार गूँथता तू अपरूप ||

बीजांकुर शाखा-उपशाखा, क्यारी-कुंज, लता-पता ।

कण-कणमें है भरी हुई उस मोहनकी मधुरी सत्ता ।।

कमलोंका कोमल पराग विकसित गुलाबकी यह लाली ।

सनी हुई है उससे सारे विश्व-बागकी हरियाली ।।

मधुर हास्य उसका ही पाकर खिलती नित नव-नव कलियाँ ।

उसकी मंजु मत्तता पाकर भ्रमर कर रहे रंगरलियाँ ।।

पाकर सुस्वर कंठ उसीका विहग कूजते चारों ओर ।

देख उसीको मेघरूपमें हर्षित होते चातक मोर ॥

हार गूँथकर कहाँ जायगा उसे ढूँढ़ने तू माली ?

देख, इन्हीं सुमनों के अंदर उसकी मूरति मतवाली ।।

रूप-रंग, सौरभ-पर। गमें भरा उसीका प्यारा रूप ।

जिसके लिये इन्हें चुन-चुनकर हार गूँथता तू अपरूप ।।

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