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बुधवार, दिसम्बर 3, 2025

सकल जग हरिको रूप निहार

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Sakal Jag Hariko Roop Nihar

सकल जग हरिको रूप निहार ।

हरि बिनु विश्व कतहुँ कोउ नाहीं, मिथ्या भ्रम संसार ।।

अलख निरंजन, सब जग व्यापक, सब जगको आधार ।

नहिं आधार, नाहिं कोउ हरिमहँ, केवल हरि-विस्तार ।।

अति समीप, अति दूर, अनोखे, जगमहूँ, जगतें पार ।

पय-घृत, पावक-काष्ठ, बीजमहँ, तरु-फल पल्लव-डार ।।

तिमि हरि व्यापक अखिल विश्वमहँ, आनंद पूर्ण अपार ।

एहि बिधि एक बार निरखत ही, भव-बारिधि हो पार ।।

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