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बुधवार, अक्टूबर 8, 2025

देख एक तू ही तू | Dekh Ek Tu Hi Tu He Tu Sarvavyaapak Jag Tu Hi Tu

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देख एक तू ही तू ही तू सर्वव्यापक जग तू ही तू

Dekh Ek Tu Hi Tu He Tu Sarvavyaapak Jag Tu Hi Tu

देख एक तू ही तू ही तू । सर्वव्यापक जग तू ही तू ।।

सत, चित, घन आनंद नित, अज, अव्यक्तं, अपार ।

अलख, अनादि, अनंत, अगोचर, पूर्ण विश्व-आधार ।

एकरस, अव्यय तू ही तू || सर्वव्यापक ० ।।

सत्यरूपसे जगत सत्र, तेरा ही विस्तार ।

जग माया-कल्पित है सारा तव संकल्प/धार ।

रचयिता-रचना तू ही तू ।। सर्वव्यापक० ॥

तुझ बिन दूजी वस्तु नहिं, किंचित भी संसार ।

सूत सूत-र्माणयोंमें गूँथा, जल-तरंगवत सार ।

भरा एक तू ही तू ही तू ।। सर्वव्यापक ० ।।

मात-पिता-धाता तू ही, वेदवेद्य ओंकार ।

पावन परम पितामह तू ही, सुहृद शरणदातार ।

सृजत, पालत, संहारत तू ।। सर्वव्यापक ०||

क्षर, अक्षर, कूटस्थ तू, प्रकृति-पुरुष तव रूप ।

मायातीत, वेदवर्णित पुरुषोत्तम अतुल, अरूप ।

रूपमय सकल रूप ही तू || सर्वव्यापक० ||

मोह-स्वप्नको भंग कर, निज रूपहि पहिचान ।

नित्य सत्य आनंद बोध घन निजमें निजको जान ।

सदा आनंदरूप एक तू ॥ सर्वव्यापक ० ।।

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