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मंगलवार, दिसम्बर 2, 2025

हरि अवतरे कारागार | Hari Avatare Karagar

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हरि अवतरे कारागार

Hari Avatare Karagar

हरि अवतरे कारागार ।

दिसि सकल भइँ परम निरमल अभ्र सुखमा-सार ।

लता-बिटप सुपल्लवित पुष्पित नमत फल-भार ।

सुस्वद मंद सुगंध सीतल बहत मलय-बयार ।

देवगन हरखत सुमन बरवत करत जयकार ।।

बिनय करत बिरंचि नारद सिद्ध बिबिध प्रकार ।

करत किंनर गान बहु गंधरव इरख अपार ।!

संख चक्र गदा नवांबुज लसत हैं भुज चार ।

भृगु-लता कौस्तुभ-सुसोभित, कांतिके आगार ।।

नौमि नीरद-नील नव तनु गले मुकता-हार ।

पीत पट राजत, अलक लखि अलिहु करत पुकार ।।

परम बिस्मित देखि दंपति छबिहिं अमित उदार ।

निरखि सुंदरता अपरिमित लजत कोटिन मार ॥

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