करत नहिं क्यों प्रभुपर विस्वास
Karat Nahin Kyon Prabhupar Visvaas
करत नहिं क्यों प्रभुपर विस्वास ।
विस्वंभर, सब जगके पालक, पूरै तेरी आस ॥
सुख लगि ठोकर खात इतहिं-उत, डोलत सदा उदास ।
मिलत न कबहू सुख विषयनमें दुखमय यह अभिलास ।।
प्रभु-पद-पदम सदा चिंतन कर, छूटै जमकी त्रास ।
मन अनंत आनंदमगन नित, प्रमुदित परम हुलास ||