मैं नित भगतन हाथ बिकाऊँ
Main Nit Bhagatan Haath Bikaoon
मैं नित भगतन हाथ बिकाऊँ ।
आठौं जाम हृदयमें राखूँ, पलक नहीं बिसराऊँ ।॥
कल न परत बैकुंठ बसत मोहि, जोगिन मन न समाऊँ।
जहें मम भगत प्रेमजुत गावहिं, तहाँ बसत सुख पाऊँ ।।
भगतनकी जैसी रुचि देखूँ, तैसो बेष बनाऊँ ।
टारूँ अपने बचन भगत लगि, तिनके बचन निभाऊँ ।।
ऊँच-नीच सब काज भगतके, निज कर सकल बनाऊँ।
पग धोऊँ, रथ हाँकूँ, माँजू बासन, छानि छवाऊँ ॥
माँगू नाहिं दाम कछु तिनतें, नहिं कछु तिनहिं सताऊँ ।
प्रेमसहित जल, पत्र, पुष्प, फल, जो देवै सो खाऊँ ।।
निज-सरबस भगतनको सौंपूँ, अपनो स्वत्व भुलाऊँ ।
भगत कहें सोइ करूँ, निरंतर, बेचें तो बिक जाऊँ ।।



