श्री शाकम्भरी देवी का परिचय Shri Shakambhari
श्री शाकम्भरी देवी हिंदू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिनकी पूजा विशेष रूप से शाकम्भरी नवरात्रि के समय की जाती है। वे देवी दुर्गा के अवतार मानी जाती हैं और उनकी पूजा अर्चना विशेष फलदायी मानी जाती है। शाकम्भरी देवी का नाम उनके भक्तों को भोजन, पानी और आवश्यक चीजों की कमी से बचाने की क्षमता के कारण पड़ा।
श्री शाकम्भरी चालीसा का महत्त्व
श्री शाकम्भरी चालीसा एक प्रसिद्ध स्तोत्र है जो शाकम्भरी देवी की महिमा का वर्णन करता है। इस चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से देवी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
चालीसा पाठ का विधि विधान
चालीसा पाठ की विधि विशेष रूप से सरल और प्रभावी है। इसे किसी भी समय पढ़ा जा सकता है, लेकिन नवरात्रि और विशेष पर्वों पर इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। पाठ करने से पहले व्यक्ति को स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए और देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाना चाहिए।
शाकम्भरी चालीसा का पाठ
श्री शाकम्भरी चालीसा का पाठ हिंदी में बहुत ही सरल और सुगम है। इसमें देवी की महिमा, उनके विभिन्न अवतारों, और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन किया गया है। इसके शब्दों में इतनी शक्ति है कि यह व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है।
शाकम्भरी चालीसा के लाभ
श्री शाकम्भरी चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, भौतिक समृद्धि, और आध्यात्मिक संतोष प्राप्त होता है। इसके अलावा, यह चालीसा व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों और समस्याओं को दूर करने में भी सहायक होती है। यह माना जाता है कि जो व्यक्ति नियमित रूप से श्री शाकम्भरी चालीसा का पाठ करता है, उसे देवी की कृपा से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
शाकम्भरी चालीसा: धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा
शाकम्भरी चालीसा केवल एक धार्मिक पाठ ही नहीं है, बल्कि यह एक धार्मिक अनुष्ठान का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। इसे देवी की विशेष पूजा के समय, विशेष अवसरों पर, और रोजमर्रा की पूजा में शामिल किया जा सकता है। इस चालीसा का पाठ करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और परिवार के सभी सदस्यों को देवी की कृपा प्राप्त होती है।
नवरात्रि और शाकम्भरी चालीसा
नवरात्रि के पावन पर्व पर श्री शाकम्भरी चालीसा का विशेष महत्त्व है। इस दौरान देवी शाकम्भरी की विशेष पूजा की जाती है और भक्तगण व्रत रखते हैं। इस समय श्री शाकम्भरी चालीसा का पाठ करने से देवी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति आती है।
श्री शाकम्भरी देवी के प्रमुख मंदिर
भारत में श्री शाकम्भरी देवी के कई प्रमुख मंदिर हैं, जहां भक्तगण उनके दर्शन और पूजा के लिए जाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर हैं: शाकम्भरी देवी मंदिर, सहारनपुर; शाकम्भरी देवी मंदिर, सांभर झील, राजस्थान; और शाकम्भरी देवी मंदिर, सोलन, हिमाचल प्रदेश। इन मंदिरों में वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है, विशेषकर नवरात्रि के समय।
श्री शाकम्भरी चालीसा: एक धार्मिक अनुभव
श्री शाकम्भरी चालीसा का पाठ करना एक धार्मिक अनुभव है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह चालीसा न केवल देवी की महिमा का गुणगान करती है बल्कि व्यक्ति के जीवन में आने वाली सभी नकारात्मक शक्तियों को भी दूर करती है। इसके पाठ से मनुष्य के भीतर एक नई ऊर्जा का संचार होता है और वह अपने जीवन को अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने लगता है।
श्री शाकम्भरी चालीसा Shri Shakambhari Chalisa Lyrics
॥ दोहा ॥
बन्दउ माँ शाकम्भरी चरणगुरू का धरकर ध्यान।
शाकम्भरी माँ चालीसा का करे प्रख्यान ॥
आनन्दमयी जगदम्बिका अनन्त रूप भण्डार।
माँ शाकम्भरी की कृपा बनी रहे हर बार ।।
॥ चौपाई ॥
शाकम्भरी माँ अति सुखकारी, पूर्ण ब्रह्म सदा दुःख हारी।
कारण करण जगत की दाता, आनन्द चेतन विश्व विधाता।
अमर जोत है मात तुम्हारी, तुम ही सदा भगतन हितकारी।
महिमा अमित अथाह अर्पणा, ब्रह्म हरि हर मात अर्पणा ।
ज्ञान राशि हो दीन दयाली, शरणागत घर भरती खुशहाली ।
नारायणी तुम ब्रह्म प्रकाशी, जल-थल-नभ हो अविनाशी ।
कमल कान्तिमय शान्ति अनपा, जोतमन मर्यादा जोत स्वरुपा ।
जब-जब भक्तों नें है ध्याई, जोत अपनी प्रकट हो आई।
प्यारी बहन के संग विराजे, मात शताक्षि संग ही साजे ।
भीम भयंकर रूप कराली, तीसरी बहन की जोत निराली।
चौथी बहिन भ्रामरी तेरी, अद्भुत चंचल चित्त चितेरी।
सम्मुख भैरव वीर खड़ा है, दानव दल से खूब लड़ा है।
शिव शंकर प्रभु भोले भण्डारी, सदा शाकम्भरी माँ का चेरा।
हाथ ध्वजा हनुमान विराजे, युद्ध भूमि में माँ संग साजे ।
काल रात्रि धारे कराली, बहिन मात की अति विकराली।
दश विद्या नव दुर्गा आदि, ध्याते तुम्हें परमार्थ वादि।
अष्ट सिद्धि गणपति जी दाता, बाल रूप शरणागत माता।
माँ भण्डारे के रखवारी, प्रथम पूजने के अधिकारी।
जग की एक भ्रमण की कारण, शिव शक्ति हो दुष्ट विदारण।
भूरा देव लौकड़ा दूजा, जिसकी होती पहली पूजा।
बली बजरंगी तेरा चेरा, चले संग यश गाता तेरा।
पाँच कोस की खोल तुम्हारी, तेरी लीला अति विस्तारी।
रक्त दन्तिका तुम्हीं बनी हो, रक्त पान कर असुर हनी हो।
रक्त बीज का नाश किया था, छिन्न मस्तिका रूप लिया था।
सिद्ध योगिनी सहस्या राजे, रूप मराल का तुमने धारा,
शोक पात से मुनि जन तारे, भद्र काली कम्पलेश्वर आई,
सात कुण्ड में आप विराजे । भोजन दे दे जन जन तारा।
शोक पात जन दुःख निवारे। कान्त शिवा भगतन सुखदाई।
भोग भण्डारा हलवा पूरी, ध्वजा नारियल तिलक सिंदुरी।
लाल चुनरी लगती प्यारी, ये ही भेंट ले दुख निवारी।
अंधे को तुम नयन दिखाती, कोढ़ी काया सफल बनाती ।
बाँझन के घर बाल खिलाती, निर्धन को धन खूब दिलाती ।
सुख दे दे भगत को तारे, साधु सज्जन काज संवारे।
भूमण्डल से जोत प्रकाशी, शाकम्भरी माँ दुःख की नाशी।
मधुर मधुर मुस्कान तुम्हारी, जन्म जन्म पहचान हमारी।
चरण कमल तेरे बलिहारी, जै जै जै जग जननी तुम्हारी।
कान्ता चालीसा अति सुखकारी, संकट दुःख दुविधा सब टारी।
जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे।
जो कोई जन चालीसा गावे, मात कृपा अति सुख पावे।
कान्ता प्रसाद जगाधरी वासी, भाव शाकम्भरी तत्व प्रकाशी।
बार बार कहें कर जोरी, विनती सुन शाकम्भरी मोरी ।
मैं सेवक हूँ दास तुम्हारा, जननी करना भव निस्तारा।
यह सौ बार पाठ करे कोई, मातु कृपा अधिकारी सोई।
संकट कष्ट को मात निवारे, शोक मोह शत्रु न संहारे।
निर्धन धन सुख सम्पत्ति पावे, श्रद्धा भक्ति से चालीसा गावे।
नौ रात्रों तक दीप जगावे, सपरिवार मगन हो गावे।
प्रेम से पाठ करे मन लाई, कान्त शाकम्भरी अति सुखदाई।
॥ दोहा ॥
दुर्गा सुर संहारणि, करणि जग के काज।
शाकम्भरी जननि शिवे रखना मेरी लाज ॥
युग युग तक व्रत तेरा, वो ही तेरा लाड़ला,
करे भक्त उद्धार। आवे तेरे द्वार ॥