Ganesha Pancharatnam In Hindi
गणेश पंचरत्नम्(Ganesha Pancharatnam – శ్రీ మహాగణేశ పంచరత్నం)एक महत्वपूर्ण संस्कृत स्तोत्र है, जो भगवान गणेश की महिमा और उनके अद्वितीय गुणों का वर्णन करता है। इसे शंकराचार्य जी ने रचा था, जो भारतीय दर्शन और भक्ति परंपरा के महान आचार्य माने जाते हैं। यह स्तोत्र पाँच श्लोकों का समूह है, जो भगवान गणेश की स्तुति में रचित है। इसे पंचरत्न (पाँच रत्न) कहा जाता है क्योंकि इसमें पाँच श्लोक हैं और हर श्लोक को एक रत्न के समान महत्वपूर्ण और प्रभावशाली माना गया है।
गणेश पंचरत्नम् का महत्व Ganesha Pancharatnam Importance
भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि, और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। गणेश पंचरत्नम् में भगवान गणेश के उन गुणों का वर्णन किया गया है, जो भक्त को जीवन में सफलता और शांति प्रदान करते हैं। यह स्तोत्र न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि यह मानसिक एकाग्रता और आत्म-ज्ञान को भी बढ़ाता है।
गणेश पंचरत्नम् पाठ करने के लाभ Ganesha Pancharatnam Benifits
गणेश पंचरत्नम् का पाठ करने से अनेक लाभ होते हैं, जैसे:
- बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति – यह स्तोत्र मानसिक शांति और एकाग्रता प्रदान करता है।
- बाधाओं का निवारण – भगवान गणेश की कृपा से जीवन की सभी कठिनाइयाँ और बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
- सकारात्मक ऊर्जा का संचार – नियमित पाठ से सकारात्मक ऊर्जा और आत्मविश्वास का विकास होता है।
- आध्यात्मिक उत्थान – यह स्तोत्र व्यक्ति को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है।
पाठ का समय और विधि
गणेश पंचरत्नम् का पाठ प्रातःकाल और गणेश चतुर्थी जैसे विशेष अवसरों पर किया जाता है। पाठ से पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान गणेश की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर शांत मन से पाठ करें।
श्री महागणेश पञ्चरत्नम् Ganesha Pancharatnam శ్రీ మహాగణేశ పంచరత్నం
मुदाकरात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकम् ।
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम् ।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकम् ।
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम् ॥ १ ॥
नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरम् ।
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम् ।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरम् ।
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरन्तरम् ॥ २ ॥
समस्त लोक शङ्करं निरस्त दैत्य कुञ्जरम् ।
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम् ।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करम् ।
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम् ॥ ३ ॥
अकिञ्चनार्ति मार्जनं चिरन्तनोक्ति भाजनम् ।
पुरारि पूर्व नन्दनं सुरारि गर्व चर्वणम् ।
प्रपञ्च नाश भीषणं धनञ्जयादि भूषणम् ।
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम् ॥ ४ ॥
नितान्त कान्ति दन्त कान्ति मन्त कान्ति कात्मजम् ।
अचिन्त्य रूपमन्त हीन मन्तराय कृन्तनम् ।
हृदन्तरे निरन्तरं वसन्तमेव योगिनाम् ।
तमेकदन्तमेव तं विचिन्तयामि सन्ततम् ॥ ५ ॥
महागणेश पञ्चरत्नमादरेण योऽन्वहम् ।
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम् ।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रताम् ।
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात् ॥
गणेश पंचरत्नम् का नियमित पाठ करने से भगवान गणेश की अनुकंपा प्राप्त होती है और जीवन के हर पहलू में सकारात्मक परिवर्तन आता है। यह स्तोत्र भक्त और भगवान के बीच के संबंध को और अधिक प्रगाढ़ बनाता है।