नवग्रह मंगल स्तोत्रम्(Navagraha Mangala Stotram) एक महत्वपूर्ण वैदिक ग्रंथ है, जिसे नवग्रहों के शांति, संतुलन और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पढ़ा जाता है। यह स्तोत्र भगवान वेदव्यास द्वारा रचित माना जाता है और इसमें नवग्रहों—सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु—की स्तुति की गई है।
यह स्तोत्र ज्योतिषीय दृष्टिकोण से अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इसका पाठ विशेष रूप से उन व्यक्तियों के लिए लाभकारी होता है, जिनकी कुंडली में ग्रहों का अशुभ प्रभाव हो।
नवग्रहों का महत्व Importance of Navagraha
- सूर्य (रवि): आत्मा, पिता, शक्ति और प्रतिष्ठा के कारक।
- चंद्रमा (सोम): मन, माता, भावनाएं और मानसिक शांति के कारक।
- मंगल (भौम): साहस, ऊर्जा, भूमि और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।
- बुध (सौम्य): बुद्धि, वाणी, व्यापार और तर्कशक्ति का ग्रह।
- गुरु (बृहस्पति): ज्ञान, धर्म, संतान और सौभाग्य का प्रतीक।
- शुक्र: सौंदर्य, प्रेम, विवाह और विलासिता का कारक।
- शनि: कर्म, न्याय, अनुशासन और दीर्घायु का प्रतीक।
- राहु: छाया ग्रह, इच्छाओं, भ्रम और अपार सफलता का कारक।
- केतु: आध्यात्मिकता, मुक्ति और तंत्र विद्या का प्रतिनिधित्व करता है।
नवग्रह मंगल स्तोत्रम् का पाठ
इस स्तोत्र में हर ग्रह के लिए अलग-अलग श्लोक होते हैं, जो उस ग्रह के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने और नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए पढ़े जाते हैं।
उदाहरण के लिए:
- सूर्य के लिए
“जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
तमोऽरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम्॥” - चंद्रमा के लिए
“दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम्।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम्॥” - मंगल के लिए
“धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम्।
कुमारं शक्तिहस्तं च मंगलं प्रणमाम्यहम्॥”
इस प्रकार प्रत्येक ग्रह का श्लोक अलग-अलग प्रभाव देता है।
पाठ का समय और विधि
- समय: इस स्तोत्र का पाठ प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में या संध्या के समय शुभ माना जाता है।
- स्थान: पाठ को शुद्ध, शांत और पवित्र स्थान पर करना चाहिए।
- संकल्प: पाठ शुरू करने से पहले भगवान का ध्यान और ग्रहों की शांति का संकल्प लेना चाहिए।
- संख्या: नवग्रह स्तोत्र का पाठ 7, 11, या 21 बार करने से अधिक लाभ होता है।
नवग्रह स्तोत्रम् के लाभ Benifits of Navagraha Stotram
- ग्रहों की अशुभ स्थिति में सुधार होता है।
- जीवन में शांति, समृद्धि और स्थिरता आती है।
- मानसिक तनाव और रोगों से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति और सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
- कुंडली के दोष, जैसे कालसर्प योग, पितृ दोष आदि, का प्रभाव कम होता है।
नवग्रह मंगल स्तोत्रम् का विशेष उपयोग Usage of Navagraha Stotram
- मंगल दोष निवारण: जिनकी कुंडली में मंगल दोष हो, वे इस स्तोत्र का नियमित पाठ करें।
- शनि साढ़े साती: शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए भी यह स्तोत्र अत्यंत प्रभावशाली है।
- राहु-केतु दोष: राहु और केतु के अशुभ प्रभाव को कम करने में सहायक।
नवग्रह मंगल स्तोत्रम् Navagraha Mangala Stotram
भास्वान् काश्यपगोत्रजोऽरुणरुचिः सिंहाधिपोऽर्कः सुरो
गुर्विन्द्वोश्च कुजस्य मित्रमखिलस्वामी शुभः प्राङ्मुखः।
शत्रुर्भार्गवसौरयोः प्रियकुजः कालिङ्गदेशाधिपो
मध्ये वर्तुलपूर्वदिग्दिनकरः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
चन्द्रः कर्कटकप्रभुः सितनिभश्चात्रेयगोत्रोद्भव-
श्चात्रेयश्चतुरश्रवाऽरुणमुखो राकोडुपः शीतगुः।
षट्,सप्ताग्निदशैकशोभनफलो नोरिर्बुधार्कौ प्रियौ
स्वामी यामुनजश्च पर्णसमिधः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
भौमो दक्षिणदिक्त्रिकोणयमदिग्विन्ध्येश्वरः खादिरः
स्वामी वृश्चिकमेषयोस्तु सुगुरुश्चार्कः शशी सौहृदः।
ज्ञोऽरिः षट्त्रिफलप्रदश्च वसुधास्कन्दौ क्रमाद्देवते
भारद्वाजकुलोद्वहोऽरुणरुचिः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
सौम्यः पीत उदङ्मुखः समिदपामार्गोऽत्रिगोत्रोद्भवो
बाणेशानदिशः सुहृद्रविसुतः शान्तः सुतः शीतगोः।
कन्यायुग्मपतिर्दशाष्टचतुरः षण्णेत्रगः शोभनो
विष्णुर्देव्यधिदेवते मगधपः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
जीवश्चाङ्गिरगोत्रजोत्तरमुखो दीर्घोत्तराशास्थितः
पीतोऽश्वत्थसमिच्च सिन्धुजनितश्चापाधिपो मीनपः।
सूर्येन्दुक्षितिजाः प्रिया बुधसितौ शत्रू समाश्चापरे
सप्तद्वे नवपञ्चमे शुभकरः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
शुक्रो भार्गवगोत्रजः सितरुचिः पूर्वम्मुखः पूर्वदिक्-
पाञ्चालो वृषपस्तुलाधिपमहाराष्ट्राधिपौदुम्बरः।
इन्द्राणीमघवा बुधश्च रविजो मित्रार्कचन्द्रावरी
षष्ठाकाशविवर्जितो भगुसुतः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
मन्दः कृष्णनिभः सपश्चिममुखः सौराष्ट्रपः काश्यपिः
स्वामी नक्रसुकुम्भयोर्बुधसितौ मित्रौ कुजेन्दू द्विषौ।
स्थानं पश्चिमदिक् प्रजापतियमौ देवौ धनुर्धारकः
षट्त्रिस्थः शुभकृच्छनी रविसुतः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
राहुः सिंहलदेशपोऽपि सतमः कृष्णाङ्गशूर्पासनो
यः पैठीनसगोत्रसम्भवसमिद्दूर्वो मुखाद्दक्षिणः।
यः सर्पः पशुदैवतोऽखिलगतः सूर्यग्रहे छादकः
षट्त्रिस्थः शुभकृच्च सिंहकसुतः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।
केतुर्जैमिनिगोत्रजः कुशसमिद्वायव्यकोणस्थित-
श्चित्राङ्कध्वजलाञ्छनो हि भगवान् यो दक्षिणाशामुखः।
ब्रह्मा चैव तु चित्रगुप्तपतिमान् प्रीत्याधिदेवः सदा
षट्त्रिस्थः शुभकृच्च बर्बरपतिः कुर्यात् सदा मङ्गलम्।