दृष्टी दया की -प्रार्थना
भगवन् दया की दृष्टी टुक एक बार करदो । भवसिन्धु से हमारी नैया को पार करदो ॥ ९ ॥ नित धर्म में लगे मन अधर्म से दूर भागें । सत्संग सुख को मांगें मति निर्विकार करदो २॥ अज्ञानमय अन्धेरा होवे हृदय से बाहर । विज्ञान रवि उदय हो निर्मल विचार करदो ॥ ३ ॥ परस्वार्थ स्वार्थ मानू निज स्वार्थ व्यर्थ मानूं ॥ अभियान मोह ममता कलुषों को क्षार करदों || ४ || यह मन्नीलाल पंडित कहें कानपुर निवासी। दे भक्ति पद की पावन कौशल कुमार करदो ॥ ५॥ भगवन दया की दृष्टि टुक एक बार करदो ।